" राजा रघु "
नारायण । श्री
एक बार राजा रघु ऐसा ही सर्वमेध यज्ञ कर चुके थे । दान करते
नारायण
राजा रघु कहले लगे
जैसे ही रधु का निर्णय हुआ
नारायण । अन्तमेँ आकर ऋषियोँ ने बीच
नारायण । इस कथा के द्वारा कुछ सूक्ष्म बात भी बता भी जान लेँ ।
हमारे यहाँ
"
कपालं चेतीयत्तव वरद तंत्रोपकरणम् ।।
" रघु " बड़े प्रतापी राजा हुए । वे इतने प्रतापी थे कि उन्ही के नाम से उनका " वंश " ही चल गया जिसे " रघुवंश " कहा जाता है । जो सर्व विदित है । साक्षात् श्री सच्चिदानन्द परब्रह्म परमात्मा भगवान् श्री विष्णु यद्यपि उनके कुल मेँ उत्पन्न हुए , लेकिन फिर भी वह रामवंश नही कहा गया । उलटा राम का ही नाम रघु से पड़ा , रघु से उत्पन्न राघव , रघुकुलोद्भव , रधुनाथ , राघवेन्द्र , रघुवंशी नाम पड़े । यह राजा रघु की कितनी बड़ी महत्ता बताता है । रघु बड़े दानी थे । आजकल के राजा की तरह ( वर्तमान सरकारोँ ) नहीँ थे । आजकल के राजा का दान तो आप जानते ही हैँ । अगर तीन सौ बीस करोड़ रुपया आप लोगोँ से टैक्स लिया । उनमेँ से दो सौ अस्सी करोड़ रुपया उनके कर्मचारियोँ पर खर्च होता है अर्थात् वह रुपया खुद उन पर ही खर्च होता है जो टैक्स लेते हैँ । बाकी से कुछ सड़के इत्यादि बना दी गई । कहते हैँ कि " प्रजा ( जनता ) का कल्याण कर रहे हैँ " , नारायण , नाम हो रखा है " बैलफेयर स्टेट " ," जनकल्याण मन्त्रालय " अर्थात् जनता का कल्याण करने बाला राज्य , जनता का कल्याण करने बाला महकमा । आपके जितनी बरसोँ की कमाई विद्यमान हैँ , उस सबको लेना अर्थात जो कुछ जनता की सम्पति है उसे " चूँकि हम तुम्हारे उपर राज्य करते हैँ , इसलिये " लूट लेना - इसी का नाम " वेलफेयर " रखा है । लेकिन रघु प्राचीन हिन्दू राजा थे और जनता का कल्याण करते थे । जनकल्याण का अर्थ उन्होँने " जनता से राजा का कल्याण " ऐसा नही समझ रखा था ! जनता का कल्याण हो , उसे वे जनकल्याण मानते थे । आज जनता से जो अपना ज्यादा से ज्यादा कल्याण कर ले , वह उतना ही बड़ा " नेता " हो जाता है । नारायण , राजा रघु ऐसे नही थे , उनका दृष्टिकोण था कि हम अधिक से अधिक जनता का कल्याण करेँ । इसलिये वे बीच - बीच मेँ " सर्वमेध यज्ञ " करते थे जिसमेँ जितनी अपनी सम्पत्ति होती थी , सब दान कर देते थे । दूसरे राज्योँ पर चढ़ाई करके वहाँ से धन लाते थे , यही राजा का उस समय कार्य था , उसी धन के द्वारा " सर्वमेध यज्ञ " करके उसमेँ वह सम्पत्ति सबको बाँट देते थे ।- करते अपने पूजा के बर्तन और अपने सारे वस्त्र भी दान कर दिये थे । नारायण , यह कोई अतिशयोक्ति नही है । नारायण , श्री राजा रघु की बात जाने देँ , आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व होने होने वाले राजा " हर्ष " के बारे मेँ " फाहियान " और " इत्सिंग " लिखते हैँ कि वह हर