" श्री भगवन्नाम जपयज्ञ " ? श्री गीता जी मेँ श्रीभगवान् ने - " जपयज्ञ " को अपनी " विभूति " बताया है " यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि " इस यज्ञ का द्रव्य क्या है ? वाणी के द्वारा उच्चारण किया जाने वाला " मंत्र " या कोई उन श्री सच्चिदानन्द का नाम । जीसे आपने जान लिया है ,मान लिया है । नारायण । कहने को लोग बड़ी सरलता से कहते हैँ कि " हम तो जप यज्ञ कर रहेँ है , यानी उस श्री सच्चिदानन्द जी नामजप कर रहे हैँ , मंत्र का जप कर रहे हैँ । नारायण , पर यह इतना सरल नहीँ है , बड़ा टेढ़ा है मामला है क्योँकि यज्ञ के अन्दर जो सामग्री ड़ालेँगे , वह शुद्ध होनी चाहिये । कीड़ा खाये हुए गेँहूँ से तो यज्ञ होने वाला नही है । जिस तिल का तेल निकल चुका है , उस बचे हुए खली से भी यज्ञ नही होना है और जो चावल सड़ चुका है , उससे भी यज्ञ होने वाला नही है । यज्ञ होने के लिये द्रव्य शुद्ध होना चाहिये । अगर " जपयज्ञ " करते हैँ तो पहले विचार करना पड़ेगा कि वाणी मेँ कोई अशुद्धि तो नही है । वाणी की सबसे बड़ी अशुद्धि झूठ बोलना है । इसलिय हमारे मंत्रद्रष्टा पुराणकारोँ ने कहा कि " कलियुग " मेँ रहने वालोँ को मंत्रसिद्धि क्योँ नही होती ? उसमेँ कारण ही बताया " असत्यवदन " ( असत्य बोलने ) के द्वारा वाणी दग्ध हो गई है । जैसे जला हुआ पदार्थ यज्ञ के काम का नहीँ है , इसी प्रकार जो वाणी झूठ बोलती है , उससे क्या " जपयज्ञ " हो सकेगा ! ऐसे ही दूसरे की निन्दा करना भी वाणी का दोष है ।जो व्यक्ति अपनी वाणी से किसी दूसरे की निन्दा करता है , क्या वह " जपयज्ञ " कर सकेगा ? इसलिये " द्रव्ययाग " करना सरल है , " जपयज्ञ " करना कठीन है । योँ कहने को लोग बड़ी जल्दी कह देते हैँ कि " हम जपयज्ञ करेँगे । " अच्छे चावलोँ को बीनना सरल है , धी बढ़िया खरीद कर लाना सरल है , तिलोँ को भी अच्छा चुनकर लाना सरल है , लेकिन वाणी को शुद्ध रखना बड़ा कठीन है । नारायण । सम्पूर्ण जीवन मेँ भी अगर उस प्रभु के नाम का , मंत्र का एक माला भी हो तो जीवन सफल ।
लेकिन बड़ा कठीन है । श्री नारायण हरिः ।।
लेकिन बड़ा कठीन है । श्री नारायण हरिः ।।
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