Saturday, January 29, 2011

" स्वयं से पूछेँ " ?

" स्वयं से पूछेँ " ?
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नारायण । अमेरिका मेँ ऑपेन हायमर नाम के एक बड़े वैज्ञानिक थे । अब वे संसार मेँ नही रहे । वे अपने साथ जर्मनी का एक बड़ा बुड्ढा अध्यापक रखते थे जो गणित - शास्त्री था । नारायण । नाम था उसका " षुट्ज " । ऑपेन हायमर कोई भी सिद्धान्त बनाते थे तो उसे सामने बैठाकर सुनाते थे ! कई लोग ऑपेन हायमर से पूछते थे " तुम्हारी बात इनकी समझ मेँ आती होगी ? " ऑपेन हायमन कहते थे " इन्हे गणित बहुत आता है । मैँ कोई भी सिद्धान्त बनाता हूँ , तो वह गणित की दृष्टि से ठीक है या गलत , इसे जानने के लिये इन्हे सुनता हूँ और ये समझकर तुरंत जबाब दे देते हैँ । " ऑपेन हायमन से उनके एक वैज्ञानिक मित्र ने कहा - " यह जमाना ऑटोमेटान का है , ऐसी मशीन आति हैँ जो गणित का सवाल तुरंत हल कर देती हैँ । इस जमाने मेँ अपने साथ इस बुड्ढे - खूसट को क्योँ रख छोड़ा है ? मशीन से जबाब लिया करो । हायमर को यह जच गई कि इन बेचारोँ को क्योँ तकलीफ देँ । क्योँकि कई बार समय - बे समय इन्हे बैठाकर पूछना पड़ता था और वे 90 नब्बे वर्ष के थे । हायमन ने मशीन रख ली । अपना एक सिद्धान्त मशीन को सुनाया तो उसका जबाब आया कि तुम्हारा " सिद्धान्त गलत है ।" दुसरे ही दिन सबेरे " षुट्ज से कहा कि " आज बड़ी गड़बड़ी हो गई । एक सबाल किया लेकिन गलत निकल आया ।" षुट्ज को पहले ही अनुभव था कि इसका प्रातिभ ज्ञान कभी गलत होने वाला नही है । उसने कहा , " सुना । " सुनाया तो षुट्ज उसी समय कहने लगा " तेरा सिद्धान्त ठीक है ।" हायमर को विश्वास था कि षुट्ज ने कह दिया तो गलती नहीँ हो सकती । नारायण , चार आदमी बैठकर उस हिसाब को छह महिने मेँ पूरा कर पाये । जब पूरा हुआ तो पता लगा कि मशीन ने गलती की थी । नारायण , हमलोगोँ को संस्कार बैठा दिया गया है कि यन्त्र से आने वाला जबाब सही होता है । लेकिन हायमर ने उस दिन से कान पकड़ लिया कि " मशीन को अब अपना सिद्धान्त नही सुनाऊँगा । " मशीन गलती कर सकती है लेकिन जिसने " गुर " का अभ्यास किया है , उसके दिमाग से गलत जबाब नही आयेगा । मशीन का कोई खटका खराब हो जाये तो सारे जबाब गलत ही आते रहेँगे , जब तक " चेतन " मिलान करके न देखे तब तक पता ही नही चलेगा कि गलती होती चली जा रही है । योँ यंत्र गलती कर सकता है लेकिन जिसने " गुर " याद कर रखा है , वह चेतन गलती नही खायेगा ।
ऐसे ही हमारे मन , बुद्धि मशीन हैँ । सिर्फ मन , बुद्धि के भरोसे रहने पर जबाब गलत निकल सकता है । लेकिन यदि आपने अभ्यास पक्का कर रखा है तो आपका आनन्दरूपता का जबाब तुरंत आ जायेगा । यंत्र गलत बता सकता है लेकिन जिनने अभ्यास से अपने को पुष्ट कर लिया है वह गलत नहीँ बता सकता । इसी प्रकार हर परिस्थिति के अन्दर यदि अभ्यास किया है कि किस प्रकार अपने स्वरूप आनन्द मेँ पहुँचे तब चाहे किसी प्रकार के राग , द्वेष आदि का सवाल आये , तुरन्त अपने स्वरूप मेँ आनन्दरूप मेँ पहुँच जायेँगे । जैसे राजा के लिये उसके राज्य मेँ रहने वाली प्रजा है , इसी प्रकार आपके - हमारे शरीर मेँ रहने वाली " कर्मेन्द्रियाँ , ज्ञानेन्द्रयाँ , अन्तःकरण - ये सारे आपके - हमारे प्रजा हैँ , मन मेँ उत्पन्न होने वाली जितनी वृत्तियाँ हैँ , वे मन की प्रजा हैँ । क्या कारण है कि आज घर - घर मेँ राग , द्वेष . काम , क्रोध छोटी - छोटी बातोँ पर लोभ , मोह बढ़ता जा रहा है । क्योँकि हमारा राजा इन सब दोषोँ से भरा है । जब राज्य करने वाले मेँ ये भरेँ हैँ तब प्रजा मेँ आने ही हुए । यह वही देश है : यहाँ एक ब्राह्मण का जवान मर गया था । वह ब्राह्मण उसे लाकर श्री भगवान रामचन्द्र जी के दरबाजे पर ले गया । कहा - " तुम्हारा राज्य अधर्म का राज्य है । मेरा जबान लड़का क्योँ मर गया ? " " निज पुत्रोँ का श्राद्ध पिता रो - रो कर करता है , हे जगदीश्वर तुम्हारी क्या यही ईश्वरता है ! " भगवान श्री राम ने पता लगाया कि किस अपराध के कारण ब्राह्मण का जबान लड़का मर गया । उनका निश्चय था क्योँकि " मेरी प्रजा को दुःख हुआ तो जिम्मेवारी मेरी है ।" आज उसी देश मेँ हजारोँ आदमियोँ को मार ड़ालेँ , उनका सामान फेँक देँ तो भी राजा कहता है " मेरा कोई कसूर नही है , कसूर तुम लोगोँ का है । उसे यह साहस नही है कि पता लगाऊँ किस अधर्म के कारण ऐसा हुआ है । जैसे राज्य मेँ ऐसे ही घर मेँ पिता छाती पर हाँथ रखकर नहीँ कहता कि " लड़के को मैँने बिगाड़ा है । " कहता है " आजकल के लड़के बिगड़ गये हैँ ।" राजा को यह कहने की हिम्मत होनी चाहिये कि मेरी प्रजा के अन्दर जितनी खराबियाँ आ रही है , वे मेरी हैँ । घर के अन्दर बड़े को यह अभिमान होना चाहिये कि मैने लड़के को ठीक नही रखा तब वह बिगड़ गया । दूसरे पर जिम्मेवारी डालना बेकार है । इसी प्रकार सारे शरीर मेँ यह अभिमान होना चाहिये , " मन मेँ गलत वृति आई है तो मेरी गलती से आई है । ऐसा बहाना न बनायेँ की पूराने जमाने के संस्कार उदय हो गये होँगे या किसी को देख कर ऐसी वृत्ति आ गई होगी ।
नारायण । आज जोधपुर ( राजस्थान ) मेँ जहर मिला शराब पी कर कितने गरीब मर रहे है मुख्यमंत्री मरने बाले लोगोँ को लाख - लाख रुपये सहायता राशी बाँट रहे हैँ और हाँथ उठवा - कर पीनेवालोँ से संकल्प करवा रहे हैँ कि शराब नही पीयेँगे । दूसरी तरफ उन्ही के कारीन्दे मंत्री तो साथ - साथ चल रहे हैँ वे कहते है कि सरकारी दूकान से खरीद कर पीओ । आज हमारी मनसा ऐसी हो गई है कि हजार- पाँच सौ रुपयोँ के लिये किसी की हत्या कर देते हैं तो अगर लाख - पाँच लाख रुपया सरकार से मरने के बाद मुआबजा मिल जाये तो ऐसे बहुत दुष्ट प्रकृति के लोग हैँ जो अपने ही घर मेँ रुपयोँ की लालच मेँ या सरकारी नौकरी पाने के लिये अपने घर के सदस्य की हत्या कर देँगे । विहार मेँ एक शिक्षक के पुत्र ने अभी रिटायर नही हुये पीता की हत्या करके सानत्वना रूप मेँ नौकरी पा लीया । यह सरकारी मुआबजा का राजनितिक खेल बन्द होना चाहिये । आज भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वर्तमान सरकार से यह मांग कर रहे हैँ कि जो जहर मिले शराब पीने जो मरे है उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दो । क्या इस देश मेँ ऐसा ही खेल होता रहेगा ?हम दूसरोँ पर जिम्मेदारी ड़ालते रहेँगे और खुद अपने मन ,बुद्धि , इन्द्रयोँ पर नियन्त्रण नही रखेँगे तो हमारा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा ।
 नारायण हरिः ।।

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