Sunday, September 12, 2010
प्रिय साधक मित्रोँ - तीन बातेँ ध्यानमेँ रखेँगे - आपका भला होगा ...
1:-पहली बात , ईश्वर आपको वैराग्यकी ओर चला रहा है कि राग - द्वेषकी ओर ? ईश्वर जब प्रसन्न होकर चलाता है तो वैराग्यकी ओर चलाता है , अन्तर्मुख बनाता है , जब ईश्वरकी प्रेरणा - ईश्वरकी कृपा उसमेँ प्रत्यक्ष होती है । 2: - दूसरी बात है , शास्त्रमेँ ईश्वरका जो स्वरूप बताया गया है , उसीके अनुसार आपको ईश्वरका दर्शन हुआ है कि मनमाने ढंगका हुआ है ? अगर मनमाने ढ़ंगका ईश्वरका दर्शन हुआ है तो उनमेँ आपकी वासना जुड़ी हुई है । वासनाका नाश तो शास्त्रोक्त पद्धतिसे होता है । प्राकृत - पद्धतिसे से वासनाकी पूर्ति होती है , विकृति होती है । संस्कृति शास्त्रसे आति है । संस्कार शास्त्रसे उत्पन्न किया जाता है और प्रकृतिसे विकार आता है । इसलिए , जो लोग कहते हैँ कि हम पशुओँकी रहनी देखकर कर्तव्यका निर्णय करेगेँ या भोजनका निर्णय या औषधिका निर्णय करेँगे - वह गलत है । शालग्रामकी मूर्ति , राधाकृष्णकी मूर्ति संस्कार करके बनानी पड़ेगी । और , स्त्री - पुरषका जो प्रेम है वह विकारसे ही हो जायगा , परन्तु ईश्वरसे प्रेम , गुरु - दीक्षा , शास्त्रका स्वाध्याय , सतसंग - ये सब भावनाकी उत्पतिसे होगा । देखना यह है कि आपका अनुभव शास्त्रके संस्कारसे अनुविद्ध है कि विरुद्ध है ? यदि आपके भाव शास्त्र संस्कारके अनुरोधी हैँ , तो वे ईश्वरकी प्रेरणा हैँ और यदि शास्त्र विरोधी भाव उठते हैँ तो वे आपके लिए साधन नही है , कृपा नही हैँ । 3 :- तीसरी बात है , माता - पिताके दिए हुए शरीर और ज्ञानकी अपेक्षा , ईश्वरकी प्राप्तिके मार्गमेँ , गुरुका दिया हुआ शरीर , गुरुका दिया हुआ भाव , अपने लिए विशेष उपयोगी होता है । गुरुने आपके हृदयमेँ जिस रूपका - सखी , सखा , जिज्ञासु , सेवक , दासी , दास , पत्नि आदिके रूपका संस्कार ड़ाला है , उस संस्कारके अनुसार ईश्वरकी ओर चलेगेँ तो ईश्वरकी सच्ची प्राप्ति होगी । मेरे नारायण । इन तीनोँ बातो पर जब आप दृढ़ रहेँगे तो पर्दे पर पर्दा हटता जायेगा और भीतर जो चीज है बाहर आ जायेगा । श्रीमद्मागवत जी मेँ बताया गया है कि - भगवान के दिव्य रूपका दर्शन , उनके साथ बातचीत - ये सारी बातेँ होती हैँ और , जो उस मार्गमेँ दृढ़ नही होता है , उसको अन्तर्देशके जो रहस्य हैँ , वे प्रकट नही होते हैँ । तो भाई . साधनाके मार्ग जो अग्रसर होता है , उसके लिए कुछ भी असम्भव नही है । +जय जय शंकर । हर हर शंकर ।। केदार शंकर । काशी शंकर ।। जय जय शंकर । हर हर शंकर ।। कांची शंकर । कामकोटी शंकर ।। जय जय शंकर । हर हर शंकर ।। कैलाश शंकर । कालटी शंकर ।। जय जय शंकर । हर हर शंकर ।। साम्ब शंकर । सदाशिव शंकर ।। जय जय शंकर । हर हर शंकर ।।
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