Wednesday, September 15, 2010

आँखेँ खोलो ॥

कहाँ दौड़ रहे हो ?
कहाँ भाग रहे ?
कहाँ भटक रहे हो ?
कहाँ माथा पटक रहे हो ?
कहाँ रेत पर महल बना रहे हो ?
कहाँ इन्द्र - धनुषके स्वप्न देख रहे हो ?
तुम नशे मेँ हो , तुम बेहोशीमेँ हो ।
तुम काँप रहे हो ,
तुम्हारे पैर डगमगा रहे हैँ ,
तुम जो कुछ कर रहे हो ,
बेहोशी मेँ कर रहे हो ।
जितना जल्दी हो सके जाग जाओ ,
वर्ना तुम्हारी पीड़ा बढ़ती जाएगी ,
तुम्हारी व्यथा फैलती जाएगी ,
तुम्हारी बीमारी असाध्य होती जाएगी ।
तुम उठो , जागो ,
तुम जाओ उनके पास , जो जागे हुए है ।

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